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ग़ज़ल
बशीर बद्र
ग़ज़ल
कहीं चाक-ए-जाँ का रफ़ू नहीं किसी आस्तीं पे लहू नहीं
कि शहीद-ए-राह-ए-मलाल का नहीं ख़ूँ-बहा उसे भूल जा
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
ये क़नाअ'त है इताअत है कि चाहत है 'फ़राज़'
हम तो राज़ी हैं वो जिस हाल में जैसा रक्खे
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
जिस क़दर उस से त'अल्लुक़ था चला जाता है
उस का क्या रंज हो जिस की कभी ख़्वाहिश नहीं की
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
तबीअ'त अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में
हम ऐसे में तिरी यादों की चादर तान लेते हैं