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ग़ज़ल
वो गुल जिस गुल्सिताँ में जल्वा-फ़रमाई करे 'ग़ालिब'
चटकना ग़ुंचा-ए-गुल का सदा-ए-ख़ंदा-ए-दिल है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
देख कलियों का चटकना सर-ए-गुलशन सय्याद
सब की और सब से जुदा अपनी डगर है कि नहीं
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
उस जान-ए-बहाराँ ने जब से मुँह फेर लिया है गुलशन से
शाख़ों ने लचकना छोड़ दिया ग़ुंचे भी चटकना भूल गए
अदीब मालेगांवी
ग़ज़ल
नईम सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
न जिस में लफ़्ज़-ओ-मा'नी हों कलाम उस को नहीं कहते
चटकना पत्थरों का कब हुई तक़रीर पत्थर की
रशीद लखनवी
ग़ज़ल
गुलशन की फ़ज़ा से जब गुज़रा ग़ुंचों का चटकना भी देखा
होंटों की हँसी आँखों की नमी और शाम सुहानी याद आई