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ग़ज़ल
छे दिन तो बड़ी सच्चाई से साँसों ने पयाम-रसानी की
आराम का दिन है किस से कहें दिल आज जो सदमे सहता है
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ग़ज़ल
इस्माइल मेरठी
ग़ज़ल
गोया फ़क़ीर मोहम्मद
ग़ज़ल
छे दिनों तक शहर में घूमा वो बच्चों की तरह
सातवें दिन जब वो घर पहुँचा तो बूढ़ा हो गया
कुमार पाशी
ग़ज़ल
तू उन को चाह छोड़ मुझे वाछड़े चे-ख़ुश
रक्खे हैं मेरे वास्ते दिलदार चार पाँच