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ग़ज़ल
कभी पत्थर के दिल ऐ 'कैफ़' पिघले हैं न पिघलेंगे
मुनाजातों से फ़रियादों से चीख़ों से पुकारों से
कैफ़ भोपाली
ग़ज़ल
कभी पत्थर के दिल ऐ 'कैफ़' पिघले हैं न पिघलेंगे
मुनाजातों से फ़रियादों से चीख़ों से पुकारों से
कैफ़ भोपाली
ग़ज़ल
सोख़्तगाँ की बज़्म-ए-सुख़न में सद्र-ए-नशीं आसेब
चीख़ों के सद ग़ज़लों पर सन्नाटों की तहसीन
इरफ़ान सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
फ़ज़ा को चीर देते हैं परिंदे अपनी चीख़ों से
ज़मीं पर जब कहीं बिखरे हुए पर देख लेते हैं
भारत भूषण पन्त
ग़ज़ल
हर तरफ़ ख़ूनीं भँवर हर सम्त चीख़ों के अज़ाब
मौज-ए-गुल भी अब के दोज़ख़ की हवा से कम न थी
ख़याल अमरोहवी
ग़ज़ल
रेत का ढेर नज़र आते हैं शहर के सारे पुख़्ता घर
चीख़ों से दिल डर जाएँ तो सब कुछ यूँही लगता है
मरग़ूब अली
ग़ज़ल
किस की चीख़ों से लरज़ते हैं दर-ओ-दीवार सब
कौन है जो रात भर रोता है तेरे शहर में