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ग़ज़ल
मेरे तीखे शेर की क़ीमत दुखती रग पर कारी चोट
चिकनी चुपड़ी ग़ज़लें बे-शक आप ख़रीदें सोने से
मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
ग़ज़ल
एक हलचल सी मचा देती है सूरत उन की
चिकनी मिट्टी पे मिरे पाँव फिसल जाते हैं
मोहम्मद आफ़ताब अहमद साक़िब
ग़ज़ल
लोग 'मुज़फ़्फ़र'-हनफ़ी को भी पाबंदी से पढ़ते हैं
चिकनी-चपड़ी ग़ज़लें पढ़ते पढ़ते जी उकताए तो
मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
ग़ज़ल
चिकनी-चुपड़ी बातों से तुम छोड़ दो हम को भरमाना
चाल तुम्हारी दिल ये हमारा अच्छे से पहचाने है