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ग़ज़ल
निगाह-ए-शोख़ ओ चश्म-ए-शौक़ में दर-पर्दा छनती है
कि वो चिलमन में हैं नज़दीक हम चिलमन के बैठे हैं
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
जीवन भेदन की चिंता छोड़ो आओ कुछ इस पर बात करें
हम धरती के फंदे में हैं धरती किस के जाल में है
अंजुम फ़ौक़ी बदायूनी
ग़ज़ल
क्यूँ चिंता ज़ंजीरों की हथकड़ियों से डरना कैसा
तुम अंगारा बन जाओ लोहा ख़ुद ही गल जाएगा