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ग़ज़ल
चारों शाने चित मिट्टी पर गिरा पड़ा हूँ 'ताबिश'
जाने किस ने दूसरी जानिब रस्सा छोड़ दिया है
अब्बास ताबिश
ग़ज़ल
नूह नारवी
ग़ज़ल
बशीरुद्दीन अहमद देहलवी
ग़ज़ल
ज़क़न की चाह में ये सब्ज़ी-ए-ख़त ज़हर-ए-क़ातिल है
परी है भाँग कूए में न हो क्यूँ ख़ल्क़ चित-भंगी