aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "chit-chor"
सावन आया छाने लगे घोर घन घोर बादलकरते हैं फिर दिल को परेशान चित चोर बादल
है बदन चूर और कोमल किस क़दर चित-चोर शामजैसे शर्मीली दुल्हन ख़ुद में सिमटती जाए है
जो दिल पे गुज़रती है किसी से न कहूँगीसुनना है जिसे जाए वो चित चोर से सुन ले
चाँद छत छोड़ राह पर निकलाघर को छोड़ा तो दिल से डर निकला
हित चोर चित भुलावे मैं आपने पिया कूँआक़िल जहाँ के बोलें हिकमत उसे कते हैं
ख़ुदा का ख़ौफ़ नहीं वायरस का था ख़दशाजिसे भी मौक़ा मिला है वो चीन छोड़ गया
पूछ मत किस ने ये लगाई चोटदे गई अपनी आश्नाई चोट
आँख उठाई ही थी कि खाई चोटबच गई आँख दिल पे आई चोट
क्या कहूँ मैं ने कैसी खाई चोटपेट उखड़ा कमर में आई चोट
मोहब्बत से इनायत से वफ़ा से चोट लगती हैबिखरता फूल हूँ मुझ को हवा से चोट लगती है
माना कि सख़्त होती है तीर-ओ-तबर की चोटलेकिन बुरी बला है किसी की नज़र की चोट
चोट पर चोट लगती जाती हैयाद-ए-माज़ी मुझे सताती है
शहर को चोट पे रखती है गजर में कोई चीज़बिल्लियाँ ढूँढती रहती हैं खंडर में कोई चीज़
दिल पर इस काकुल-ए-रसा की चोटक़हर की चोट है बला की चोट
मोहब्बत के सफ़र में बे-रुख़ी से चोट लगती हैजिसे हम प्यार करते हैं उसी से चोट लगती है
दिल पर लगा रही है वो नीची निगाह चोटफिर चोट भी वो चोट जो है बे-पनाह चोट
ज़ख़्म खुलते हैं चोट खाने मेंआँख भर आई मुस्कुराने में
चोट खाता हूँ मुस्कुराता हूँदर्द-ए-उल्फ़त मगर छुपाता हूँ
मिरे हरीफ़ ने मैदान-ए-जंग छोड़ दियाज़रा सी चोट पे लोहे ने ज़ंग छोड़ दिया
लबों के पास तुम्हारे कहाँ से आई चोटबुरा हो ग़ैर का उस ने दी ये पराई चोट
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