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ग़ज़ल
कहाँ अब वो मौसम-ए-रंग-ओ-बू कि रगों में बोल उठे लहू
यूँही नागवार चुभन सी है कि जो शामिल-ए-रग-ओ-पै नहीं
नासिर काज़मी
ग़ज़ल
अलावा इक चुभन के क्या है ख़ुद से राब्ता मेरा
बिखर जाता है मुझ में टूट के हर आईना मेरा
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
ग़ज़ल
अभी तक इक खटक सी है अभी तक इक चुभन सी है
अगरचे हम ने अपने दिल से हर काँटा निकाला है
तनवीर नक़वी
ग़ज़ल
सय्यदा फ़रहत
ग़ज़ल
कभी पैरों से आँखों तक चुभन महसूस होती है
कभी ये ज़िंदगी मुझ को चमन महसूस होती है