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ग़ज़ल
क्यूँ न वहशत में चुभे हर मू ब-शक्ल-ए-नीश-तेज़
ख़ार-ए-ग़म की तेरे दीवाने की काविश और है
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
क़मर जलालवी
ग़ज़ल
हम जो आ बैठे कभी तो तन में काँटे ही चुभे
साया-ए-गुल भी हमें कितना अज़ीयत-नाक था
मुहम्मद याक़ूब आमिर
ग़ज़ल
खटक आज आँसुओं की दे रही है ये ख़बर मुझ को
चुभे थे दिल में जो काँटे वो आँखों से निकलते हैं
राज़ रामपुरी
ग़ज़ल
इस तकल्लुफ़ के शहर में लोग काँटों से चुभे
तू जो अपना सा लगा तो दिल पे मरहम पड़ गया