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ग़ज़ल
ये ताइर ऊँघते रहते हैं बैठे सब्ज़ गुम्बद पर
अगर चुग लें कहीं से हिम्मत-ए-परवाज़ आने दो
क़मर रईस
ग़ज़ल
जी धड़कता है कहीं तार-ए-रग-ए-गुल चुभ न जाए
सेज पर फूलों की करते क़स्द-ए-ख़ुफ़तन आप हैं
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
ख़ून की बूँदें बनी हैं चुन्नियाँ याक़ूत की
दिल में चुभ कर दे रही हैं ज़ख़्म-ए-कारी चूड़ियाँ