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ग़ज़ल
पुष्पराज यादव
ग़ज़ल
ज़रीफ़' इंसाफ़ से कह दो वो आशिक़ है कि चूहा है
ज़मीन-ए-क़स्र-ए-जानाँ में जो ये चाहे कि मस्कन हो
ज़रीफ़ लखनवी
ग़ज़ल
कहाँ चूहा कहाँ बिल्ली कहाँ कुत्ता कहाँ पंछी
मुसीबत जब पड़ी हो तो ये सारे साथ रहते हैं
नज़र द्विवेदी
ग़ज़ल
कहाँ चूहा कहाँ बिल्ली कहाँ कुत्ता कहाँ पंछी
मुसीबत जब पड़ी हो तो ये सारे साथ रहते हैं
नज़र द्विवेदी
ग़ज़ल
रख़नों से दीवार-ए-चमन के मुँह को ले है छुपा या'नी
इन सूराख़ों के टुक रहने को सौ का नज़ारा जाने है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
तरब-आशना-ए-ख़रोश हो तू नवा है महरम-ए-गोश हो
वो सरोद क्या कि छुपा हुआ हो सुकूत-ए-पर्दा-ए-साज़ में