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ग़ज़ल
हँस हँस के जवाँ दिल के हम क्यूँ न चुनें टुकड़े
हर शख़्स की क़िस्मत में इनआ'म नहीं होता
मीना कुमारी नाज़
ग़ज़ल
हम कब तक अपने हाथों से ख़ुद अपने लिए दीवार चुनें
कभी तुझ से हुक्म-उदूली हो कभी मुझ से ना-फ़रमानी हो
सलीम कौसर
ग़ज़ल
आँखों से देख कर तुझे सब मानना पड़ा
कहते थे जो हमेशा चुनें है चुनाँ नहीं
मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दा
ग़ज़ल
हमीं वो थे कि होती थी बसर फूलों के ग़ुंचे में
हमीं अब ऐ फ़लक तिनके चुनें बे-आशियाँ हो कर
जलील मानिकपूरी
ग़ज़ल
अब तू ही हमारे चारा-गर कर उन का मुदावा दुनिया में
जो दिन भर तो फूल चुनें और रात को काँटे बो देते हैं
मीर यासीन अली ख़ाँ
ग़ज़ल
ये सूरज चाँद तारे सब चलें राह-ए-मुअ'य्यन पर
चुनें हम राह ख़ुद अपनी ख़ुद अपने राह-दाँ हम हैं