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ग़ज़ल
कहीं छाँव है कहीं धूप है कहीं और ही कोई रूप है
कई चेहरे इस में छुपे हुए इक अजीब सी ये नक़ाब है
राजेश रेड्डी
ग़ज़ल
खड़े हुए जो साहिल पर तो दिल में पलकें भीग गईं
शायद आँसू छुपे हुए हों सुब्ह की नर्म हवाओं में
बशीर बद्र
ग़ज़ल
कोई कैसे करे दिल में छुपे तूफ़ाँ का अंदाज़ा
सुकूत-ए-मर्ग छाया है किसी कोहराम से पहले
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
डर के किसी से छुप जाता है जैसे साँप ख़ज़ाने में
ज़र के ज़ोर से ज़िंदा हैं सब ख़ाक के इस वीराने में
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
कैसे कैसे भेद छुपे हैं प्यार भरे इक़रार के पीछे
कोई पत्थर तान रहा है शीशे की दीवार के पीछे