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ग़ज़ल
गुफ़्तुगू में ज़ब्त लाज़िम है ज़रा सी चूक पर
लब पे आ के हर्फ़ हर्फ़-ए-मुद्दआ' हो जाएगा
ओम कृष्ण राहत
ग़ज़ल
वो फ़स्ल पक चुकी थी अब उस का भी क्या क़ुसूर
तुझ से कहा था जेब में चिंगारियाँ न रख