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ग़ज़ल
पाँव की उँगलियाँ मुड़ जाती हैं बैठे बैठे
च्यूंटियाँ रेंगती हैं तन के बुरादे में 'सहर'
शहनाज़ परवीन सहर
ग़ज़ल
वो जब बिछड़े थे हम तो याद है गर्मी की छुट्टीयाँ थीं
तभी से माह जुलाई मुझे अच्छा नहीं लगता
आमिर अमीर
ग़ज़ल
ख़ून की बूँदें बनी हैं चुन्नियाँ याक़ूत की
दिल में चुभ कर दे रही हैं ज़ख़्म-ए-कारी चूड़ियाँ