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ग़ज़ल
बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो
चार किताबें पढ़ कर ये भी हम जैसे हो जाएँगे
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
जाने क्या क्या बोल रहा था सरहद प्यार किताबें ख़ून
कल मेरी नींदों में छुप कर जाग रहा था जाने कौन
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
मगर हम मुसिर थे कि हम ने किताबें बहुत पढ़ रखी हैं
बड़ों ने कहा भी कि देखो मियाँ तजरबा तजरबा है
जव्वाद शैख़
ग़ज़ल
हिफ़्ज़ थीं मुझ को भी चेहरों की किताबें क्या क्या
दिल शिकस्ता था मगर तेज़ नज़र ऐसा था
राहत इंदौरी
ग़ज़ल
हमारी दर्स-गाहों की निज़ामत ऐसी बिगड़ी है
किताबें पढ़ के भी बच्चों में हुश्यारी नहीं आई