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ग़ज़ल
अंधेरा ज़ेहन का सम्त-ए-सफ़र जब खोने लगता है
किसी का ध्यान आता है उजाला होने लगता है
वसीम बरेलवी
ग़ज़ल
खोने और पाने का जीवन नाम रखा है हर कोई जाने
उस का भेद कोई न देखा क्या पाना क्या खोना होगा
मीराजी
ग़ज़ल
मिरे दिल के किसी कोने में इक मासूम सा बच्चा
बड़ों की देख कर दुनिया बड़ा होने से डरता है
राजेश रेड्डी
ग़ज़ल
इतनी देर में उजड़े दिल पर कितने महशर बीत गए
जितनी देर में तुझ को पा कर खोने का इम्कान हुआ
मोहसिन नक़वी
ग़ज़ल
आमिर अमीर
ग़ज़ल
मैं भी उन्हें पहचान रहा हूँ ग़ौर से देखो बादा-कशो
शायद शैख़-ए-हरम बैठे हैं वो जो कोने वाले हैं