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ग़ज़ल
ज़ेहरा शाह
ग़ज़ल
अगर हँसने हँसाने पर कोई कॉलम लिखा जाए
तो मेरे हुक्मरानों का रवय्या दर्ज कर देना
ताहिर सऊद किरतपूरी
ग़ज़ल
हज़ारों काम हों पढ़िए मगर कॉलम ज़रूरत का
मिरे बच्चे का चेहरा सुब्ह के अख़बार जैसा है
रम्ज़ अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
'ग़ालिब'-ए-ख़स्ता के बग़ैर कौन से काम बंद हैं
रोइए ज़ार ज़ार क्या कीजिए हाए हाए क्यूँ