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ग़ज़ल
तुझे खो कर तिरी ही याद में ख़ुद को मगन करना
ख़यालों में तुझे छूना तसव्वुर में सुख़न करना
इमरान अज़ीम
ग़ज़ल
मयस्सर घर नहीं जिन को जो राहों में भटकते हैं
'ज़फ़र' उन को मकानों का पता देती हैं दीवारें
ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र
ग़ज़ल
हम को मशीनों की शोरिश से होती है घबराहट सी
ख़ामोशी की चाहत हम को गाओं में फिर ले आई है
मुजीब शेह्ज़र
ग़ज़ल
ये न सोचो यार से हैं नफ़अ'-ओ-नुक़सान क्या
यार की यादों में बस ख़ुद को मगन रक्खा करो
अख़्तर हाशमी
ग़ज़ल
फ़िरोज़ नातिक़ ख़ुसरो
ग़ज़ल
ढूँडिए दिन रात हफ़्तों और महीनों के बटन
ला-मकाँ में खो गए हैं इन मकीनों के बटन