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ग़ज़ल
है जिन्हें सब से ज़ियादा दा'वा-ए-हुब्बुल-वतन
आज उन की वज्ह से हुब्ब-ए-वतन रुस्वा तो है
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
निगाह-ओ-दिल से गुज़री दास्ताँ तक बात जा पहुँची
मिरे होंटों से निकली और कहाँ तक बात जा पहुँची
अनवर साबरी
ग़ज़ल
बे-ख़ुद हैं तेरे जल्वा-ए-तौबा-शिकन से हम
हैं बे-नियाज़ बादा-ए-रंज-ओ-मेहन से हम
साहबज़ादा मीर बुरहान अली खां कलीम
ग़ज़ल
क़िस्मत में हैं बर्बादियाँ याद-ए-वतन से क्या ग़रज़
मैं फूल हूँ टूटा हुआ मुझ को चमन से क्या ग़रज़
नाज़िश बदायूनी
ग़ज़ल
मुसलसल ख़ौफ़ है अब तो कहीं ऐसा न हो जाए
मिरी अर्ज़-ए-वतन मेरे लिए बर्मा न हो जाए
अब्दुल्लाह ख़ालिद
ग़ज़ल
हम राह-रव-ए-मंज़िल दुश्वार रहे हैं
हर तरह मुसीबत में गिरफ़्तार रहे हैं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
वो नियाज़-ओ-नाज़ के मरहले निगह-ओ-सुख़न से चले गए
तिरे रंग-ओ-बू के वो क़ाफ़िले तिरे पैरहन से चले गए
शाज़ तमकनत
ग़ज़ल
बरसों अश्कों से वुज़ू का सिलसिला करते रहे
हम नमाज़-ए-ज़िंदगी यूँ भी अदा करते रहे