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ग़ज़ल
अभी इस क़िस्सा-ए-ग़म को न तुम छेड़ो न हम छेड़ें
मरीज़-ए-'इश्क़-ए-बे-दम को न तुम छेड़ो न हम छेड़ें
माहम ख़ान
ग़ज़ल
अख़्तर शीरानी
ग़ज़ल
महबूब ख़ाँ रौनक़
ग़ज़ल
फ़क़त दो हिचकियों में ख़त्म क़िस्सा शाम-ए-ग़म का है
चराग़-ए-ज़िंदगी अब साथ तेरा कोई दम का है
मुस्लिम मलेगाँवी
ग़ज़ल
क़िस्सा-ए-दर्द-ए-जिगर किस से कहूँ कैसे कहूँ
ये मोहब्बत का असर किस से कहूँ कैसे कहूँ
मयंक अकबराबादी
ग़ज़ल
किसी के भूल जाने से मोहब्बत कम नहीं होती
मोहब्बत ग़म तो देती है शरीक-ए-ग़म नहीं होती
ग़म बिजनौरी
ग़ज़ल
मनअ' क्यूँ करते हो इश्क़-ए-बुत-ए-शीरीं-लब से
क्या मज़े का है ये ग़म दोस्तो ग़म खाने दो