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ग़ज़ल
सारी गली सुनसान पड़ी थी बाद-ए-फ़ना के पहरे में
हिज्र के दालान और आँगन में बस इक साया ज़िंदा था
जौन एलिया
ग़ज़ल
बाँटने निकला है वो फूलों के तोहफ़े शहर में
इस ख़बर पर हम ने भी गुल-दान ख़ाली कर दिया
ऐतबार साजिद
ग़ज़ल
कॉलेज का दालान नहीं है प्यारे ज़ालिम दुनिया है
और यहाँ सच बोलने वाला सच में सब से झूटा है