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ग़ज़ल
मैं चमन में क्या गया गोया दबिस्ताँ खुल गया
बुलबुलें सुन कर मिरे नाले ग़ज़ल-ख़्वाँ हो गईं
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
फ़ना तालीम-ए-दर्स-ए-बे-ख़ुदी हूँ उस ज़माने से
कि मजनूँ लाम अलिफ़ लिखता था दीवार-ए-दबिस्ताँ पर
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
दीवाना हूँ मैं भी वो तमाशा कि मिरा ज़िक्र
गोया सबक़ अतफ़ाल-ए-दबिस्ताँ के लिए है
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
दबिस्तान-ए-वफ़ा में उम्र भर की सफ़्हा-गर्दानी
समझ में आई उल्फ़त की किताब आहिस्ता आहिस्ता
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
ग़ज़ल
रात गए जब तारे भी कुछ बे-मा'नी से लगते हैं
एक दबिस्ताँ खुलता है उन आँखों की तफ़सीरों का
अब्बास ताबिश
ग़ज़ल
मैं सिलसिला-दर-सिलसिला इक नामा-ए-रौशन
किस हर्फ़-ए-बशारत का दबिस्ताँ हूँ बताओ
राजेन्द्र मनचंदा बानी
ग़ज़ल
बुलबुल को ख़ार ख़ार-ए-दबिस्ताँ है इन दिनों
हर तिफ़्ल की बग़ल में गुलिस्ताँ है इन दिनों
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
दबिस्तान-ए-अज़ल में ऊस्ताद-ए-इश्क़ ने मुझ को
सबक़ पहले दिया था अबजद-ए-वाब-ए-मोहब्बत का
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
आ गई पीरी मगर अब तक है तू महव-ए-ख़याल
हम-सबक़ तिफ़्लों का तू तिफ़्ल-ए-दबिस्ताँ अब भी है
बशीरुद्दीन अहमद देहलवी
ग़ज़ल
जनाब-ए-क़ैस ने दिल से भुलाया दोनों आलम को
जुनूँ के चार हर्फ़ों का सबक़ लेकर दबिस्ताँ में
साइल देहलवी
ग़ज़ल
हर्फ़-ए-मतलब अपने दीवाने का भी सुन जा ज़रा
हो तुझे छुट्टी जो ऐ तिफ़्ल-ए-दबिस्ताँ आज-कल
वज़ीर अली सबा लखनवी
ग़ज़ल
रामपुर ऐ मिरे तहज़ीब-ओ-तमद्दुन के दयार
हो मुबारक तुझे उर्दू का दबिस्ताँ होना