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ग़ज़ल
इस दाई-ए-अम्न-ओ-मुहब्बत के रस्ते में दुश्मन की फ़ौजें
यूँ बरसों फैल गईं जैसे चढ़ते दरिया की मौजें
सईद अहमद अख़्तर
ग़ज़ल
वक़्फ़ा-ए-उम्र एक दम हैफ़ है वो भी सर्फ़-ए-ग़म
किस को है ए'तिमाद-ए-रोज़ किस को है ए'तिबार-ए-शब