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ग़ज़ल
एक जल्वे की हवस वो दम-ए-रेहलत भी नहीं
कुछ मोहब्बत नहीं ज़ालिम तो मुरव्वत भी नहीं
आसी ग़ाज़ीपुरी
ग़ज़ल
दुहाई है ग़म-ए-मजबूरी-ए-इम्काँ दुहाई है
कि फिरती हैं दम-ए-रेहलत हमारी पुतलियाँ हम से
अफ़क़र मोहानी
ग़ज़ल
ब-ज़ाहिर उस के लबों पर हँसी रही लेकिन
दम-ए-विदाअ' वो दर-पर्दा बे-क़रार भी था
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
वो तलव्वुन-ए-दम-ए-होश था कभी कुछ बने कभी कुछ बने
ये जुनून-ए-इश्क़ की शान है जो बना दिया सो बना दिया
आले रज़ा रज़ा
ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
वक़्त के नादाँ परिंदे ज़ोम-ए-दानाई के गिर्द
ख़ूब-सूरत ख़्वाहिशों के दाम ले कर आए हैं
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
'नरेश' अक़सा-ए-आलम जगमगा उट्ठे निगाहों में
तसव्वुर में मिरे जिस दम मिरा वो रश्क-ए-हूर आया
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
जब हो दम-ए-आख़िर तो बचा लेने की ताक़त
फिर ख़ाक-ए-शिफ़ा में न कहीं आब-ए-बक़ा में
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
हुआ है अबरू-ए-जानाँ से दिल-ए-बेताब सद-पारा
मुक़ाबिल हो नहीं सकता दम-ए-शमशीर से काग़ज़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
आले रज़ा रज़ा
ग़ज़ल
दिल है ग़मनाक तो कौनैन है मातम-ख़ाना
रोते हैं सब दर-ओ-दीवार बड़ी मुश्किल है