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ग़ज़ल
अफ़्सोस कि दंदाँ का किया रिज़्क़ फ़लक ने
जिन लोगों की थी दर-ख़ुर-ए-अक़्द-ए-गुहर अंगुश्त
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
इश्क़-ए-दंदाँ की ख़ता पर क़त्ल जो मुझ को किया
इस लिए शमशीर-ए-क़ातिल में भी दन्दाना हुआ
रिन्द लखनवी
ग़ज़ल
जबीं महताब आँखें शोख़ शीरीं लब गुहर दंदाँ
बदन मोती दहन ग़ुंचे अदा हँसने की प्यारी है
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
हुजूम-ए-नाला हैरत आजिज़-ए-अर्ज़ यक-अफ़्ग़ाँ है
ख़मोशी रेशा-ए-सद-नीस्ताँ से ख़स-ब-दंदाँ है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
कार-गाह-ए-हस्ती में लाला दाग़-सामाँ है
बर्क़-ए-ख़िर्मन-ए-राहत ख़ून-ए-गर्म-ए-दहक़ाँ है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
निकोहिश है सज़ा फ़रियादी-ए-बे-दाद-ए-दिलबर की
मबादा ख़ंदा-ए-दंदाँ-नुमा हो सुब्ह महशर की
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ख़याल-ए-गौहर-ए-दन्दाँ में हम जो रोते हैं
सरिश्क-ए-दीदा-ए-तर है दुर-ए-यगाना-ए-इश्क़
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
ग़ज़ल
सुर्ख़ी-ए-पाँ देख ले ज़ाहिद जो दंदाँ पर तिरे
उठ खड़ा हो हाथ से तस्बीह-ए-मरजाँ छोड़ कर