aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "dar-ba-dar"
दर-ब-दर मज़दूर की तक़दीर सोचमर गया है क्यों भला रहगीर सोच
कैसे कहें दर-ब-दर नहीं हमघर में भी हैं और घर नहीं हम
रुस्वा हुए ज़लील हुए दर-ब-दर हुएहक़ बात लब पे आई तो हम बे-हुनर हुए
क्या बताऊँ कैसा ख़ुद को दर-ब-दर मैं ने कियाउम्र-भर किस किस के हिस्से का सफ़र मैं ने किया
दर-ब-दर जाऊँ ये कहाँ मुमकिनमैं बिखर जाऊँ ये कहाँ मुमकिन
लोग फिरते हैं दर-ब-दर तन्हाहो गया क्या हर एक घर तन्हा
रात गुज़री है दर-ब-दर हो करज़िंदगी तुझ से बे-ख़बर हो कर
शहर शहर ढूँड आए दर-ब-दर पुकार आएसीना-चाक निकले थे और दिल-फ़िगार आए
सूरत-ए-सहर जाऊँ और दर-ब-दर जाऊँअब तो फ़ैसला ठहरा रात से गुज़र जाऊँ
दर-ब-दर हो के दर से टूट गयामैं तो जैसे सफ़र से टूट गया
जुस्तुजू ने बहकाया मुझ को दर-ब-दर तन्हाकितने ही सनम देखे झुक सका न सर तन्हा
सब ने मुझ ही को दर-ब-दर देखाबे-घरी ने मिरा ही घर देखा
तिरी तलाश में भटका हूँ दर-ब-दर जानाँमैं तुझ को भूल न पाऊँगा उम्र भर जानाँ
माना हज़ार साल से हूँ दर-ब-दर रहालेकिन किसी की चाह के ज़ेर-ए-असर रहा
दर-ब-दर फिरता था जब-तब तुझे आबाद कियाक्या बिगाड़ा था तिरा क्यूँ मुझे बर्बाद किया
बग़ैर सम्त हुआ हूँ मैं दर-ब-दर कैसामुझे भी ख़्वाब दिखाई दिया मगर कैसा
भटकती फिरती है दिन रात दर-ब-दर तन्हाये किस को ढूँढती रहती है रहगुज़र तन्हा
वो ख़ानुमाँ-ख़राब न क्यूँ दर-ब-दर फिरेजिस से तिरी निगाह मिले या नज़र फिरे
और न दर-ब-दर फिरा और न आज़मा मुझेबस मिरे पर्दा-दार बस! अब नहीं हौसला मुझे
यूँ भटकना दर-ब-दर अच्छा नहीं लगता मुझेबिन तुम्हारे ये सफ़र अच्छा नहीं लगता मुझे
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