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ग़ज़ल
रोज़ छुप के तकता है प्यासी प्यासी नज़रों से
उस के घर के आगे से दरिया जब गुज़रता है
अंजुम लुधियानवी
ग़ज़ल
दावत-ए-पुर्सिश-ए-अहवाल है यारों से कहो
दरिया जब आँखों का चढ़ता है ग़ज़ल होती है
अब्दुल मन्नान तरज़ी
ग़ज़ल
ये आँसू तोड़ देगा सब हिसार-ए-जिस्म-ओ-जाँ इक दिन
ये दरिया जब उमड़ता है तो रोका कैसे करते हो