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ग़ज़ल
ऐ दिल वालो घर से निकलो देता दावत-ए-आम है चाँद
शहरों शहरों क़रियों क़रियों वहशत का पैग़ाम है चाँद
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
देखा गया न मुझ से मआनी का क़त्ल-ए-आम
चुप-चाप मैं ही लफ़्ज़ों के लश्कर से कट गया
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
वही रिवायत गज़ीदा-दानिश वही हिकायत किताब वाली
रही हैं बस ज़ेर-ए-दर्स तेरे किताबें पिछले निसाब वाली
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
किसी मंज़िल पे भी ज़ुल्म-ओ-सितम से डर नहीं सकता
कि मैं सज्दा कभी बातिल के आगे कर नहीं सकता
ओम प्रकाश लाग़र
ग़ज़ल
क़तरों को रोज़ देते हैं ये दर्स-ए-इज्तिहाद
फिर कैसे मान लूँ कि गुहर बोलते नहीं
औलाद-ए-रसूल क़ुद्सी
ग़ज़ल
हम को दर्स-ए-उल्फ़त-ओ-मेहर-ओ-वफ़ा देते हुए
ख़ुद को परखा आप ने ये मशवरा देते हुए