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ग़ज़ल
ग़लत है इश्क़ में ऐ बुल-हवस अंदेशा राहत का
रिवाज इस मुल्क में है दर्द-ओ-दाग़-ओ-रंज-ओ-कुलफ़त का
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
नाला-ए-मीर सवाद में हम तक दोशीं शब से नहीं आया
शायद शहर से उस ज़ालिम के आशिक़ वो बदनाम गया
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
न मैं हाल-ए-दिल से ग़ाफ़िल न हूँ अश्क-बार अब तक
मिरी बेबसी पे भी है मुझे इख़्तियार अब तक
इरफ़ान अहमद मीर
ग़ज़ल
हाल-ए-दिल 'मीर' का रो रो के सब ऐ माह सुना
शब को अल-क़िस्सा अजब क़िस्सा-ए-जाँ-काह सुना