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ग़ज़ल
रात आए तो सो जाऊँ अँधेरों से लिपट कर
मैं सुब्ह से डरता हूँ कि सूरज का डसा हूँ
सज्जाद बाक़र रिज़वी
ग़ज़ल
शाहबाज़ नय्यर
ग़ज़ल
लिए हाथ में वो कटे शजर रहे मुंतज़िर कि मिले समर
नज़र आए उन को न बाल-ओ-पर जो थे घोंसलों में दबा दिए
शहनाज़ मुज़म्मिल
ग़ज़ल
दिल यूँ डरे है ज़ुल्फ़ का मारा वो फूँक सीं
रस्सी सीं अज़्दहे का डरे जूँ डसा हुआ