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ग़ज़ल
दश्ना-ए-ग़म्ज़ा जाँ-सिताँ नावक-ए-नाज़ बे-पनाह
तेरा ही अक्स-ए-रुख़ सही सामने तेरे आए क्यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
मक़्सद है नाज़-ओ-ग़म्ज़ा वले गुफ़्तुगू में काम
चलता नहीं है दशना-ओ-ख़ंजर कहे बग़ैर
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
गरचे हूँ दीवाना पर क्यूँ दोस्त का खाऊँ फ़रेब
आस्तीं में दशना पिन्हाँ हाथ में नश्तर खुला
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
मैं भी रुक रुक के न मरता जो ज़बाँ के बदले
दशना इक तेज़ सा होता मिरे ग़म-ख़्वार के पास
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
यक्का-ताज़ ओ नेज़ा-बाज़ ओ अरबदा-जू तुंद-ख़ू
तेग़-ज़न दश्ना-गुज़ार ओ नावक-अफ़गन आप हैं
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
कोई हाथ दश्ना-ए-जाँ-सिताँ कोई हाथ मरहम-ए-पर्नियाँ
ये तो हाथ हाथ की बात है कोई वक़्त पा के सँवर गई
अज़ीज़ हामिद मदनी
ग़ज़ल
दुश्मन को ज़द पर आ जाने दो दशना मिल जाएगा
ज़िंदानों को तोड़ निकलने का रस्ता मिल जाएगा
हसन अब्बास रज़ा
ग़ज़ल
तिरी नोक क़लम ने दिल में गहरे ज़ख़्म डाले हैं
हज़ारों दश्ना-ओ-नशतर लिए ख़त का जवाब आया