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ग़ज़ल
दस्त-ए-फ़लक में गर्दिश-ए-तक़दीर तो नहीं
दस्त-ए-फ़लक में गर्दिश-ए-अय्याम ही तो है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
ऐ 'फ़लक' मैं ने जला डाली हैं सारी कश्तियाँ
क्यूँकि इस मंज़िल से आगे कोई भी मंज़िल नहीं
सय्यद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी
ग़ज़ल
जहाँ पे शम-ए-फ़लक है वहीं पे परवाना
तलाश कर मिरी महफ़िल मिरा दयार न पूछ
सय्यद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी
ग़ज़ल
ऐ 'फ़लक' मैं हूँ सग-ए-ख़ाक कफ़-ए-पा उस का
मशअ'ल-ए-राह-ए-नजात उस की शनासाई है
सय्यद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी
ग़ज़ल
मशरब-ए-दीद का शैदाई 'फ़लक' कहता है
जाम-ए-उल्फ़त में तमन्ना को मिला रहने दे
सय्यद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी
ग़ज़ल
'फ़लक' की क़ब्र पर भी फ़ातिहा पढ़ने वो आएँगे
ज़हे-क़िस्मत फ़सील-ए-इश्क़ से जिस दम अयाँ होंगे
सय्यद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी
ग़ज़ल
क़ब्र की आग़ोश में जा कर 'फ़लक' ज़ाहिर हुआ
मोनिस-ओ-हमदम अमल के मा-सिवा कोई नहीं
सय्यद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी
ग़ज़ल
पा-ए-हिम्मत तो मिरा लंग नहीं है 'हातिम'
गो मिरे काम के तईं दस्त-ए-फ़लक लूला है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ग़ज़ल
ऐ 'फ़लक' मैं जो गया सू-ए-फ़लक शोर हुआ
महफ़िल-ए-दहर से इक हस्ती-ए-मुम्ताज़ गई
हीरा लाल फ़लक देहलवी
ग़ज़ल
ऐ 'फ़लक' आई यहाँ भी मुझ को याद-ए-आशियाँ
बर्क़ तू गर्दूं पे चमकी जगमगा उट्ठा क़फ़स
हीरा लाल फ़लक देहलवी
ग़ज़ल
इज़्ज़त भी एक चीज़ है दुनिया में ऐ 'फ़लक'
उस घर न जा जहाँ कि तिरी आबरू न हो
हीरा लाल फ़लक देहलवी
ग़ज़ल
ऐ फ़लक ख़ुद को सँभालूँ कि बचाऊँ कश्ती
होश क्या जाँ भी मिरी मौज-ए-बला माँगे है
हीरा लाल फ़लक देहलवी
ग़ज़ल
पहुँच गए सर-ए-मंज़िल जो हम-सफ़र थे 'फ़लक'
हमीं तरसते रहे गर्द-ए-कारवाँ के लिए
हीरा लाल फ़लक देहलवी
ग़ज़ल
ग़म है शिकस्त का न ख़ुशी फ़त्ह की 'फ़लक'
मुझ को अमल से काम है सूद-ओ-ज़ियाँ से क्या