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ग़ज़ल
अयाँ है बे-रुख़ी चितवन से और ग़ुस्सा निगाहों से
पयाम-ए-ख़ामुशी और वो भी दो दो नश्र-गाहों से
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
मज़ा अलम में नहीं लुत्फ़ सोज़-ए-जाँ में नहीं
सबब ये है कि तपिश पर्दा-ए-फ़ुग़ाँ में नहीं
एस. नूरुद्दीन अनवर भोपाली
ग़ज़ल
ने शिकवा-मंद दिल से न अज़-दस्त-दीदा हूँ
इस बख़्त-ए-ना-रसा से अज़िय्यत-कशीदा हूँ
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ग़ज़ल
बन के किस शान से बैठा सर-ए-मिंबर वाइ'ज़
नख़वत-ओ-उज्ब हयूला है तो पैकर वाइ'ज़
मोहम्मद ज़करिय्या ख़ान
ग़ज़ल
मसर्रत में भी है पिन्हाँ अलम यूँ भी है और यूँ भी
सुरूद-ए-ज़िंदगी में ज़ेर-ओ-बम यूँ भी है और यूँ भी
सय्यद हामिद
ग़ज़ल
तुम अपनी यादों की कहकशाँ से सजा हुआ आसमान बन कर
मिरे तसव्वुर पे छा भी जाओ मोहब्बतों का जहान बन कर