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ग़ज़ल
ख़ुदा की रहमतें ऐ मुतरिब-ए-रंगीं-नवा तुझ पर
कि हर काँटे में तू ने रूह दौड़ा दी गुलिस्ताँ की
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
उस की धुन में हर तरफ़ भागा किया दौड़ा किया
एक बूँद अमृत की ख़ातिर मैं समुंदर पी गया
कृष्ण बिहारी नूर
ग़ज़ल
सैर-ए-गुल करता था वो और आह बेताबी से मैं
हर तरफ़ गुलशन में जूँ आब-ए-रवाँ दौड़ा किया
जुरअत क़लंदर बख़्श
ग़ज़ल
मय-ए-उल्फ़त की तरंग आई तो आया दौड़ा
शीशा-ए-मय को वो मय-ख़्वार बग़ल में ले कर