aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "dayaar-e-dil"
दयार-ए-दिल की रात में चराग़ सा जला गयामिला नहीं तो क्या हुआ वो शक्ल तो दिखा गया
दयार-ए-दिल से किसी का गुज़र ज़रूरी थाउजाड़ रस्ते पे कोई शजर ज़रूरी था
दयार-ए-दिल न रहा बज़्म-ए-दोस्ताँ न रहीअमाँ की कोई जगह ज़ेर-ए-आसमाँ न रही
दयार-ए-दिल में कोई इतना ख़ुश-नसीब तो होहरीफ़-ए-दार तो हो ज़ीनत-ए-सलीब तो हो
दयार-ए-दिल में नया नया सा चराग़ कोई जला रहा हैमैं जिस की दस्तक का मुंतज़िर था मुझे वो लम्हा बुला रहा है
वो ख़ुदा हो कि नाख़ुदा ऐ 'दिल'डूबना है तो सोचता क्या है
कितना हसीं था जुर्म-ए-ग़म-ए-दिल कि दो-जहाँदर पे हैं आज तक मिरे रंग-ए-क़ुबूल के
भूल बैठे हूँ वो कहीं ऐ दिलआज क्यूँ इतने याद आए हैं
खेल समझे हो ऐ दिल जिसेज़िंदगी है तमाशा नहीं
ऐ 'दिल' बहुत ख़राब हैं हालात शहर केयाँ जिस किसी से बात करो मुख़्तसर करो
बन गई हुस्न-ए-तलब भी तो मुअ'म्मा ऐ 'दिल'दर्द माँगा था वो समझे कि दवा माँगी थी
क्यों हवा हम को समझने लगी दुश्मन ऐ दिलहम दिए बेचते फिरते हैं सलाई तो नहीं
ऐ 'दिल' इन्हें इदराक कहाँ नम्रतियों काजो कहते हैं पल भर में बयाबाँ से गुज़र जा
फ़ा’इलातुन का नशा जिन पे चढ़ा है ऐ दिलवो मेरे फ़न की सताइश नहीं करने वाले
और सब कुछ हो ज़माने को मुबारक ऐ 'दिल'याँ तो दामन में मोहम्मद के सिवा कुछ भी नहीं
इस शहर में तो कुछ नहीं रुस्वाई के सिवाऐ 'दिल' ये 'इश्क़ ले के किधर आ गया तुझे
उन्स क्यूँकर न हो ऐ दिल मुझे वीरानों सेहर ख़राबे में मिरा घर नज़र आता है मुझे
आईना-ख़ाना दो-आलम को बना कर ऐ 'दिल'मुंतज़िर बैठा है वारफ़्ता-ओ-शैदा किस का
ख़र्च इतना भी न अश्कों को किया कर ऐ 'दिल'ढेर रो देने से ये आँख चिपक जाती है
न ग़म-ए-दिल के ही बस के न ग़म-ए-दौराँ केइतने आज़ाद हुए तेरे गिरफ़्तार कि बस
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