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ग़ज़ल
ऐ दिल वालो घर से निकलो देता दावत-ए-आम है चाँद
शहरों शहरों क़रियों क़रियों वहशत का पैग़ाम है चाँद
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
है अस्प-ए-तेज़-क़दम पर सवार 'उम्र-ए-इंस
सुबुक-ख़िरामी पे शिकवा किया है सरसर ने
डॉ. हबीबुर्रहमान
ग़ज़ल
रखेगा वक़्त उन के रू-ब-रू भी आइना इक दिन
जहाँ के ऐब ही देखा करेंगे नुक्ता-चीं कब तक
ए.आर.साहिल "अलीग"
ग़ज़ल
मिरी मुश्किल अगर आसाँ बना देते तो अच्छा था
लबों से लब दम-ए-आख़िर मिला देते तो अच्छा था
अतीक़ुर्रहमान सफ़ी
ग़ज़ल
उस ने चुप रह के सवालों के जवाबात दिए
और मैं ने भी सर-ए-बज़्म कहा कुछ भी नहीं
शम्स उर रहमान शम्स
ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
तिरे तेवर बदलते ही ज़माना हो गया दुश्मन
हिलाल-ए-ईद भी ज़ाहिर हुआ शमशीर की सूरत
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
है पर्दा-अंदर-पर्दा वो और अर्ज़-ओ-समा का नूर भी है
जब याद करो नज़दीक है वो जब ढूँडो उस को दूर भी है
ख़लील-उर-रहमान राज़
ग़ज़ल
कैसे टेढ़ा न चले मार बड़ी मुश्किल है
सीधी हो ज़ुल्फ़-ए-गिरह-दार बड़ी मुश्किल है
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
दिल में तीर-ए-इश्क़ है और फ़र्क़ पर शमशीर-ए-इश्क़
क्या बताएँ पड़ गई है पाँव में ज़ंजीर-ए-इश्क़