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ग़ज़ल
किया हूँ इश्क़ में तारीफ़ उस मह-रू के अबरू की
हर इक मिस्रा है मेरा रश्क दीवान-ए-हिलाली का
इश्क़ औरंगाबादी
ग़ज़ल
चेहरा-ए-रंगीं कोई दीवान-ए-रंगीं है मगर
हुस्न-ए-मतला हैं मसीं मतला है साफ़ अबरु-ए-दोस्त
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
अनीस शाह अनीस
ग़ज़ल
गईं यारों से वो अगली मुलाक़ातों की सब रस्में
पड़ा जिस दिन से दिल बस में तिरे और दिल के हम बस में
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
रता है अबरुवाँ पर हाथ अक्सर लावबाली का
हुनर सीखा है उस शमशीर-ज़न ने बेद-ए-माली का