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ग़ज़ल
दीजिए रुख़्सत-ए-बोसा नहीं ले बैठेंगे
प्यारे ये याद रहे जान भी दे बैठेंगे
सैय्यद मोहम्मद मीर असर
ग़ज़ल
एक तन्हा ख़ातिर-ए-महज़ूँ जिसे अफ़्कार सौ
एक मुझ बीमार से वाबस्ता हैं आज़ार सौ
सैय्यद मोहम्मद मीर असर
ग़ज़ल
गरचे दिल में ही सदा जान-ए-जहाँ रहते हो
पर ब-ज़ाहिर नहीं मालूम कहाँ रहते हो
सैय्यद मोहम्मद मीर असर
ग़ज़ल
दश्त-ए-आज़ार में ख़ारों पे चलाया हुआ मैं
संग-बारी के तरश्शोह में नहाया हुआ मैं
सय्यद मोहम्मद बाक़र
ग़ज़ल
ये मोहब्बत का असर है या मिरा दीवाना-पन
सेहन-ए-गुलशन सा नज़र आता है वीराना मुझे