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ग़ज़ल
अभी तक जो नहीं देखे वो मंज़र देख लेते हैं
चलो आपस में हम आँखें बदल कर देख लेते हैं
भारत भूषण पन्त
ग़ज़ल
ख़ुदा के वास्ते लोगो बचा लो अपने भारत को
हमारे देश-भक्तों से कहो समझें मक़ाम अपना
हमीद दिलकश खंड्वी
ग़ज़ल
दुनिया का ज़रा ये रंग तो देख एक एक को खाए जाता है
बन-बन के बिगड़ता जाता है और बात बनाए जाता है
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
देख कर मय मुँह में पानी शैख़ के भर आएगा
चीज़ अच्छी देखेगा मुफ़्लिस का जी ललचाएगा
किशन कुमार वक़ार
ग़ज़ल
तेरी ज़िमादारियोंं से भागना मुमकिन नहीं
तुझ में मैं या मुझ में तू ये जानना मुमकिन नहीं