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ग़ज़ल
दम-ए-मर्ग भी मिरी हसरतें हद-ए-आरज़ू से न बढ़ सकीं
उसी काले देव की क़ैद में मिरे बचपने की परी रही
गणेश बिहारी तर्ज़
ग़ज़ल
बगूले उठ चले थे और न थी कुछ देर आँधी में
कि हम से यार से आ हो गई मुडभेड़ आँधी में
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
ज़माने में किसी से अब वफ़ाएँ कौन करता है
यहाँ सब ज़ख़्म देते हैं दवाएँ कौन करता है
देवेश दीक्षित देव
ग़ज़ल
ये आँखें राह तकती हैं तुम्हें ये मन बुलाता है
चले आओ तुम्हें सूना मिरा आँगन बुलाता है
देवेश दीक्षित देव
ग़ज़ल
खुली ज़ुल्फ़ें हँसी चेहरा तुम्हारी झील सी आँखें
हमें पागल न कर दें ये बहुत दिलकश नज़ारे हैं