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ग़ज़ल
गुफ़्तम कि चश्म-ए-जादू गुफ़्ता कि दोनों ख़ंजर
गुफ़्तम धड़ी लबाँ की गुफ़्त अज़ अक़ीक़ बेहतर
फ़ाएज़ देहलवी
ग़ज़ल
मिलूँ मैं यार से फिर आप के धाड़ी है और संदल
दुआएँ शैख़ जी पीरों की तुम दरगाह से माँगो
वलीउल्लाह मुहिब
ग़ज़ल
मिस्सी की धड़ी उस की नज़रों से जो है ग़ाएब
या-रब वो सियह बदली कीधर को बरसती है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
शमीम अब्बास
ग़ज़ल
उस लब पे देखते ही से वो पान की धड़ी
शाम-ओ-शफ़क़ इन आँखों में कब ख़ुशनुमा लगी
मीर मोहम्मदी बेदार
ग़ज़ल
करते ही एक निगह में लब-ए-नाज़ुक को कबूद
क्या बना देती है मिस्सी की धड़ी मेरी आँख
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
ग़ज़ल
देखा हूँ तिरे लब पे मैं मिस्सी की धड़ी कूँ
ज़ुल्मात पे जा चश्मा-ए-हैवाँ सीं कहूँगा