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ग़ज़ल
बाहर अंदर तल्ख़ अँधेरा किस को ढूँडने निकले हो
जोत जला आते चौखट पर कुछ तो ढारस पाते ही
मनमोहन तल्ख़
ग़ज़ल
सना हाश्मी
ग़ज़ल
मेरे सिरहाने कोई बैठा ढारस देता रहता है
नब्ज़ पे हाथ भी रखता है टूटे धागे भी जोड़ता है
अख़्तर होशियारपुरी
ग़ज़ल
जामी रुदौलवी
ग़ज़ल
ख़ालिद इक़बाल यासिर
ग़ज़ल
वो जिन के क़ुर्ब से ढारस थी मेरे दिल को बहुत
कोई कहीं से उन्हें ढूँड लाए आख़िर-ए-शब
फ़रासत रिज़वी
ग़ज़ल
इक तुम से ही दिल को मिरे मिल जाती है ढारस
वर्ना यहाँ हर शख़्स बहुत मुझ से ख़फ़ा है