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ग़ज़ल
सुला कर तेज़ धारों को किनारो तुम न सो जाना
रवानी ज़िंदगानी है तो धारो तुम न सो जाना
कौसर सीवानी
ग़ज़ल
वक़्त के तूफ़ानी धारों में कितने साहिल डूब गए
नित नए साहिल फिर उभरे हैं इन तूफ़ानी धारों से
वामिक़ जौनपुरी
ग़ज़ल
बदल दे रुख़ जो मिरी ज़िंदगी के धारों का
वो हादिसा मिरे दिल पर अभी कहाँ गुज़रा
अब्दुल मतीन नियाज़
ग़ज़ल
वाक़ई दरिया-ए-ग़म के तेज़ धारों में 'रज़ा'
ज़िंदगी मेरी ख़स-ओ-ख़ाशाक हो जाएगी क्या
रज़ा मौरान्वी
ग़ज़ल
मैं नूर-ए-आगही के क़ुर्मुज़ी-धारों में रहता हूँ
अँधेरी शब के माथे की निशानी भूल जाता हूँ
शाह रूम ख़ान वली
ग़ज़ल
बहता पानी फूल कँवल के साथ बहा ले आता है
अम्न की आशा नाव बनी है दरियाओं के धारों में
फ़िरोज़ नातिक़ ख़ुसरो
ग़ज़ल
उसे पूजे है 'मुज़्तर' उगता सूरज जान कर दुनिया
कि जिस ने नाम अपना वक़्त के धारों पे लिक्खा है