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ग़ज़ल
दिल में कोई चीज़ चमकती बुझती रहती है जो 'ज़फ़र'
फ़िक्रमंद भी रहता हूँ मैं उसी धात के बारे में
ज़फ़र इक़बाल
ग़ज़ल
तिरी नींद से बड़ी आँख में मुझे ताबकार करे किरन
मुझे ऐसी धात का क़ल्ब दे जिसे ख़ौफ़-ए-रद्द-ओ-बदल नहीं
तफ़ज़ील अहमद
ग़ज़ल
सिलसिला आवाज़ का देखो कि ख़ोशे सरसराए
फिर खनक है धात की फिर साँप की फुन्कार है
मोहम्मद इज़हारुल हक़
ग़ज़ल
लोहे सोने चाँदी की हर धात की बनती है ज़ंजीर
मौज-ए-हवा में रक़्साँ हैं जो वो भी हैं ज़ंजीरें कुछ
सय्यद अली ज़हीर
ग़ज़ल
حب الوطن تیرا کہاں چھوڑیا وطن کس دھات بول
کیا سات لے آیا یہاں کیا جائے گا لے سات بول