aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "dhakel"
आ गया हूँ तो खींच अपनी तरफ़मेरी जानिब मुझे धकेल नईं
तुझे ये इश्क़ की जानिब धकेल सकता हैसमझ रहा है तो दिल को भी दोस्त घात समझ
सू-ए-तूफ़ाँ धकेल दी हम नेनाव साहिल पे जब भी आई है
तमाम ख़ुशियाँ इकट्ठी थीं एक दुख के गिर्दउन्हें धकेल के चीख़ा हटो मिरा दुख है
मूसा को क्यूँ न मौज-ए-तजल्ली धकेल देजल्वे से उस के गुल हुई मशअ'ल शुऊ'र की
दिखा रहा है अँगूठा फ़लक से तारा मुझेधकेल दे न बुलंदी से फिर दोबारा मुझे
मुझे धकेल कर उस का ज़मीर जाग उठाअब उस का हाल भी तूफ़ाँ में नाव जैसा है
ढकेल देता था ख़्वाबों के इक जज़ीरे मेंदुआ भी मेरे लिए बार-बार करता था
याँ के सपीद ओ सियह में हम को दख़्ल जो है सो इतना हैरात को रो रो सुब्ह किया या दिन को जूँ तूँ शाम किया
हाँ ठीक है मैं अपनी अना का मरीज़ हूँआख़िर मिरे मिज़ाज में क्यूँ दख़्ल दे कोई
ये सुकून-ए-जाँ की घड़ी ढले तो चराग़-ए-दिल ही न बुझ चलेवो बला से हो ग़म-ए-इश्क़ या ग़म-ए-रोज़गार कोई तो हो
दुनिया भर की यादें हम से मिलने आती हैंशाम ढले इस सूने घर में मेला लगता है
सुर्ख़ फूलों से महक उठती हैं दिल की राहेंदिन ढले यूँ तिरी आवाज़ बुलाती है हमें
रात पी ज़मज़म पे मय और सुब्ह-दमधोए धब्बे जामा-ए-एहराम के
पसंद आया बहुत हमें पेशाख़ुद ही अपने घरों को ढाने का
दिल का ये हाल कि धड़के ही चला जाता हैऐसा लगता है कोई जुर्म हुआ है मुझ से
मुझ से बिछड़ कर होगा समुंदर भी बेचैनरात ढले तो करता होगा शोर बहुत
और तदबीर को नहीं कुछ दख़्लइश्क़ के दर्द की दवा है इश्क़
कभी तो शाम ढले अपने घर गए होतेकिसी की आँख में रह कर सँवर गए होते
बाँस की खर्री खाट के ऊपर हर आहट पर कान धरेआधी सोई आधी जागी थकी दो-पहरी जैसी माँ
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