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ग़ज़ल
ये लोग औरों के दुख जीने निकल आए हैं सड़कों पर
अगर अपना ही ग़म होता तो यूँ धरने नहीं देते
वसीम बरेलवी
ग़ज़ल
धरने पे बैठने वाले पागल पिछड़ी ज़ात के थे सब
डी-एस-एल-आर वाला बस फोटो सीज़न करता था
ओसामा ज़ाकिर
ग़ज़ल
सिन ही क्या है अभी बचपन ही जवानी में शरीक
सो रहें पास मिरे ख़्वाब में डरने वाले