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ग़ज़ल
रात के ख़्वाब सुनाएँ किस को रात के ख़्वाब सुहाने थे
धुँदले धुँदले चेहरे थे पर सब जाने-पहचाने थे
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
गर्द आँखों में सही दाग़ तो चेहरे पे नहीं
लफ़्ज़ धुँदले हैं मगर फ़िक्र तो चमकीली है
मुज़फ़्फ़र वारसी
ग़ज़ल
अब भी अक्सर ख़्वाब में उन के धुँदले चेहरे आते हैं
मेरी गुड़िया की शादी में जो नन्हे बाराती थे
फ़रहत ज़ाहिद
ग़ज़ल
इक मंज़र में इक धुँदले से अक्स में छुप के रो लें
हम किस ख़्वाब में आँखें मूँदें किस में आँखें खोलें