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ग़ज़ल
बस एक मोती सी छब दिखा कर बस एक मीठी सी धुन सुना कर
सितारा-ए-शाम बन के आया ब-रंग-ए-ख़्वाब-ए-सहर गया वो
नासिर काज़मी
ग़ज़ल
मैं तो एक नई दुनिया की धुन में भटकता फिरता हूँ
मेरी तुझ से कैसे निभेगी एक हैं तेरे फ़िक्र ओ अमल
नासिर काज़मी
ग़ज़ल
क़मर जलालवी
ग़ज़ल
मगर एक धुन तो लगी रही न ये दिल दुखा न गिला हुआ
कि निगह को रंग-ए-बहार पर कोई इख़्तियार कहाँ रहा
अदा जाफ़री
ग़ज़ल
ख़याल उन का परे है अर्श-ए-आज़म से कहीं साक़ी
ग़रज़ कुछ और धुन में इस घड़ी मय-ख़्वार बैठे हैं
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
फ़क़त एक धुन थी कि रात-दिन इसी ख़्वाब-ज़ार में गुम रहें
वो सुरूर ऐसा सुरूर था वो ख़ुमार ऐसा ख़ुमार था
ऐतबार साजिद
ग़ज़ल
नग़्मे से जब फूल खिलेंगे चुनने वाले चुन लेंगे
सुनने वाले सुन लेंगे तू अपनी धुन में गाता जा